एक दिन भारती के साथ: एक सेकंड चांस कार्यकर्त्ता की लगन और ऊर्जा का परिचय

एक दिन भारती के साथ: एक सेकंड चांस कार्यकर्त्ता की लगन और ऊर्जा का परिचय

तसवीरें मैं अच्छी खीच नहीं पाता हूँ, कंसेंट ने अलग बाधा उत्पन्न की | इसलिए इस लेख में तस्वीरों के आभाव और जो तसवीरें हैं उनकी गुणवत्ता के आभाव के लिए क्षमा चाहता हूँ |

गत कुछ महीनों से गौरव के साथ बातचीत चल रही थी कि मुझे छत्तीसगढ़ टीम से मिलना चाहिए | गौरव के शब्दों में – आपका रोल है organizational effectiveness; कोई भी संस्था लोगों से बनती है, जब तक आप उन्हें, उनके सन्दर्भ को अच्छे से नहीं समझेंगे, organizational effectiveness के प्रति की गयी कोई भी पहल अधूरी और शायद बेअसर होगी |  बात बहुत सरल और स्पष्ट है. पर अपने रोजाना के काम में हमसे अक्सर नज़रंदाज़ हो जाती है |

अक्टूबर में छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय वर्कशॉप आयोजित की गयी | इससे छत्तीसगढ़ जाने का और कांकेर जिले की टीम के साथ बैठने का अवसर मिला | टीम के साथ चर्चा के अंत में मैंने सुझाव दिया कि मैं कांकेर में चल रहे Foundational Learning Program की बेहतर समझ बनाने के लिए किसी एक CIM के साथ पूरा कार्य दिवस व्यतीत करूँगा | जब मैंने यह कहा तो एक आवाज आई एक दिन सेकंड चांस के फैकल्टी के साथ भी बिताएं | यह आवाज़ थी भारती यादव की, जो प्रथम में 2021 से सेकंड चांस कार्यक्रम में हैं | जिस अपेक्षा और भावना से उन्होंने यह कहा, उनकी मांग को अनसुना करना असंभव था | तो यह तय हुआ कि मैं एक कार्य-दिवस सेकंड चांस फैकल्टी के साथ भी बिताऊंगा पर यह नहीं तय हुआ थी किस फैकल्टी के साथ | यह निर्णय छत्तीसगढ़ की सेकंड चांस टीम को लेना था |

आने वाले दिनों में विजिट का दिन तय हुआ | 21 नवम्बर सुबह 10 बजे टीम लीडर मुझे होटल से लेने आये | वह मुझे कन्हारपुरी सेकंड चांस सेंटर ले गए; उन्होंने बताया कि फैकल्टी मुझे सेंटर पर ही मिलेंगी | जब मैं सेंटर के निकट पहुंचा तब एक युवती सेंटर जाते हुए नज़र आयें | नाम पूछने पर पता चला कि इनका नाम रेशमा है, यह स्टूडेंट हैं | पता चला फैकल्टी महिलाओं को सेंटर पर बुलाने के लिए गयी हैं | कुछ ही देर में मुस्कुराते हुए फैकल्टी आयीं – यह और कोई नहीं भारती ही थी |

10:30 बजे तक 4 महिला स्टूडेंट्स सेंटर में उपस्थित थी | भारती रेशमा और एक और युवती का होमवर्क देख रहे थी, बाकी दोनों महिलाओं को बता रही थीं कि गत कुछ दिनों में क्या-क्या पढाया है | भारती ने मुझे बताया कि सेंटर का नामांकन 32 का था, तो मैं सेंटर में बने विभिन्न चार्ट्स को देखते हुए बाकी स्टूडेंट्स के आने की प्रतीक्षा करने लगा |

prathamसेंटर के बाहर बड़े आकर्षक चार्ट पर सेंटर का नाम लिखा हुआ था | सेंटर एक बड़ा कमरा था, जिसमें लगभग 20-25 स्टूडेंट्स असानी से बैठ सकते हैं | यह सेंटर पंचायत ने प्रथम को दिया था | सेंटर काफी साफ़ सुधरा था, ज़मीन पर एक बड़ी-सी हरी दरी बिछी हुई थी, सामने एक बड़ा-सा ब्लैकबोर्ड था | ब्लैक बोर्ड के दोनों ओर कई सारे चार्ट पेपर पर सुन्दर चित्र बने थे – एक पर कक्षा का साप्ताहिक टाइम टेबल, कुछ पर अलग-अलग विषयों के माइंड मैप, कुछ पर आकारों (जैसे आयत, त्रिभुज, समान्तर चतुर्भुज, समलम्ब चतुर्भुज) के चित्र और उनकी परिभाषा, कुछ पर अन्य सुन्दर दृश्य | पूरे सेंटर का माहोल देखकर वास्तव में महसूस हो रहा था जैसे यह गाँव में पढाई और शिक्षा का केंद्र ही हो |

तभी मेरी नज़र सेंटर के पिछले हिस्से में रखे कुछ बक्से और फर्निचर पर पड़ी – पता चला गाँव के विभिन्न कार्यक्रम और समारोह भी यहीं आयोजित होते हैं | पिछले सप्ताह ही दिवाली से जुड़े समारोह वहां मनाये गए थे | और हर समारोह के बाद, भारती, टीम लीडर की मदद से, पुनः सेंटर को एक लर्निंग सेंटर की तरह तैयार करती हैं |

कुछ ही देर में 11 बज गए, पर उपस्थिति में कोई वृद्धिं नहीं हुई – 32 नामांकित महिलाओं में 4 उपस्थित थी | भारती ने और उससे पहले गौरव और नूर ने मुझे बताया था कि यह धान काटने का मौसम है और इस कारण सेकण्ड चांस क्लास में उपस्थिति काफी कम बनी हुई है | 4 स्टूडेंट्स के साथ भारती ने क्लास की शुरुआत की | उपस्थिति तो कम थी पर इससे भारती का काम ज़रा भी कम नहीं हुआ – चारों स्टूडेंट्स में भी बहुत भिन्नता थी | एक नियमित रूप से आती थी, दूसरी अक्सर आती थी, पर शेष दोनों पिछले 4 महीनों में केवल 10-15 दिन आये हैं | जिसका मतलब कुछ के लिए पाठ्यक्रम को फॉलो किया जा सकता है, पर कईयों के लिए व्यक्तिगत प्रकार का catch up प्रोसेस करना होता है |

व्यक्तिगत अनुभव से कह सकता हूँ कि कम उपस्थिति का प्रभाव किसी भी शिक्षक पर पड़ता है, भारती पर भी निश्चित रूप से रहा होगा |  परन्तु भारती ने इस प्रभाव को न अपने मस्तिष्क पर ज़ाहिर होने दिया न अपनी लगन और ऊर्जा पर पड़ने दिया | उन्होंने 11 बजते ही मंगलवार की समय तालिका का पालन करते हुए गृह विज्ञान से क्लास शुरू की | मैं क्लास के पिछले हिस्से में बैठ गया, स्टूडेंट्स से थोड़ी दूरी पर | भारती ने स्टूडेंट्स से पूछा – घर और मकान में क्या अंतर होता है ? अलग-अलग जवाब आये जैसे घर वह होता है जो ईट-पत्थर से बनता है | फिर भारती ने अंतर स्पष्ट किया – घर घरवालों से बनता है | इसके बाद भारती ने प्रश्न किया घर हमारे लिए क्या-क्या काम करता है ? प्रश्न शायद थोड़ा घूमा-फिरा था, इसलिए सभी ने घर में वे क्या काम करते हैं बताना शुरू किया |

भारती ने स्पष्ट किया कि घर होने के हमारे लिए क्या लाभ होते हैं, वह यह पूछ रही हैं | स्टूडेंट्स ने घर के लाभ बताना शुरू किया – जैसे बारिश से बचाव, सोने का स्थान आदि, और भारती ने उन्हें सुरक्षात्मक, आर्थिक और सामाजिक लाभों में वर्गीकृत किया | जब वह यह कर रही थी, तभी मेरी नज़र मुझसे कुछ दूरी पर रखीं हुई गृह विज्ञान की फैकल्टी मैन्युअल पर पड़ी | मैंने देखने का प्रयास किया कि क्या भारती मैन्युअल के अनुसार ही पढ़ा रही हैं | मैनुअल में प्रत्येक दिन फैकल्टी को किन विषयों को कवर करना है, क्या और किस प्रकार से गतिविधियाँ करनी चाहिए, और इन पर कितना समय देना चाहिए यह संक्षेप में उल्लेखित है | भारती न केवल मैनुअल का पालन कर रही थी, बल्कि इन गतिविधियों और चर्चा को सरल और रोचक तरह से करने के लिए अपनी ओर से प्रासंगिक उदहारण और व्याख्या जोड़ रहीं थी |

इसके बाद की चर्चा साफ़-सफाई के प्रकार पर थी – किस प्रकार की और किन चीजों की  साफ़ सफाई हमें दैनिक रूप से करनी होती है, क्या साप्ताहिक रूप से और क्या मौसमी रूप से |  मैनुअल के अनुसार यह गतिविधि छोटे समूहों में होनी थी – पर 4 की उपस्थिति में छोटे समूह कैसे बने ! भारती ने दो स्टूडेंट्स का एक जोड़ा बनाया और उन्हें साप्ताहिक साफ़ सफाई के उदहारण लिखने को कहा, बाकि दोनों को व्यक्तिगत तौर पर दैनिक और मौसमी सफाई के उदाहरण लिखने को कहा | इसके बाद सभी ने बारी-बारी प्रस्तुतीकरण किया, जिस पर भारती, अन्य स्टूडेंट्स और मैंने टिप्पणी की | इसी दौरान भारती ने यह उदहारण बोर्ड पर लिखें और सबको अपनी कॉपी में उतारने को कहा | तभी एक और स्टूडेंट धान काटने के काम के बाद कक्षा में आयी – उपस्थिति अब 5 हो चुकी थी |

लगभग 12 बजे भारती ने जीवन कौशल की क्लास प्रारंभ की | भारती ने पदमश्री अरुणिमा सिन्हा की कहानी सुनाई | अरुणिमा सिन्हा की उपलब्धि से मैं परिचित ज़रूर था पर इनके पीछे की कहानी और चुनौती-भरे उनके जीवन के बारे में पहली बार ही समझ पाया |[1] मैं और सारे स्टूडेंट्स बड़ी गंभीरता से भारती को सुनने में विलीन थे | कहानी के अंत में हम सब काफी प्रेरित महसूस कर रहे थे, और मुझे लगता है कि यह प्रेरणा मेरे और अन्य स्टूडेंट्स के साथ भी लम्बे समय तक रहेगी | भारती ने अब सभी स्टूडेंट्स से कहानी की सीख पूछी और एक आवाज़ में सबने कहा कि चुनौतियों से कभी हार नहीं मानना चाहिए | भारती ने अब सबको होमवर्क दिया – आपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया होगा, इनसे आपने क्या सीखा ?  अब लगभग 12:25 हो गए थे; क्योंकि मेरा एक ज़ूम कॉल था मुझे सेंटर छोड़ना पड़ा | [2]

pratham.org1:15 pm पर जब मैं लौटा तो क्लास समाप्त हो चुकी थी | 2 स्टूडेंट्स जा चुके थे | बाकी दोनों पोस्ट असेसमेंट कर रहे थे और भारती उनके साथ बैठी थी; उन्हें प्रश्न समझा रहीं थी | भारती के साथ बातचीत करने के लिए यह अच्छा समय था | जैसा कि अपेक्षा की जा सकती है, सबसे पहले हमने बात कम उपस्थिति की समस्या से शुरू की | भारती ने बताया कि सितम्बर के बाद से उपस्थिति औसतन लगभग 4-7 तक की रहती है (ध्यान रहे नामांकन 32 है) | ऐसा भी नहीं कि वही 4-7 स्टूडेंट्स ही नियमित रूप से आते हैं |

2 स्टूडेंट्स नियमित रूप से आते हैं; बाकी उपस्थित स्टूडेंट्स अक्सर वह होते हैं जो आज आये तो कल नहीं | इसे बेहतर समझने के लिए उपस्थिति रजिस्टर देखा – इसकी तस्वीर यहाँ प्रस्तुत है | कम उपस्थिति और उपस्थिति की भिन्नता प्रत्यक्ष रूप से दिखती है | मैं यह मान रहा था कि शायद उपस्थिति की समस्या महिलाओं में ही दिखती होगी और न कि युवतियों में, तो पता लगा ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है | धान काटने में पूरा परिवार जुड़ता है | इसके अतिरिक्त, कुछ स्टूडेंट्स काम भी करती हैं, कुछ स्वयं सहायता समूह में जुड़ी हैं तो जब उनकी मीटिंग होती है तो उपस्थिति प्रभावित होती है, कुछ की अपनी व्यक्तिगत समस्याएं हैं |

अब सारे स्टूडेंट्स जा चुके थे | तो भारती और मैं भी निकले, हमें लंच भी करना था और दूसरे सेंटर पर भी जाना था | भारती के साथ उनकी सुन्दर-सी नीली स्कूटी पर हम रवाना हुए | इस दौरान और बातचीत हुई | 2021 में प्रथम से जुड़ने से पहले भारती प्राइवेट मिडल स्कूल में शिक्षक थी | भारती ने बताया कि सेकंड चांस के काम में काफी मज़ा आता है, पर कम उपस्थिति से निराशा भी होती है | पिछले वर्ष इस तरह की समस्या नहीं देखने को मिलती थी – नामांकन कम था पर उपस्थिति बहुत बेहतर थी | मैंने फिर भारती से समझा कि वह कक्षा की तैयारी कैसे करती हैं – उन्होंने कहा दो बार – एक बार पिछली रात को और एक बार कक्षा की शुरुआत में उपस्थिति को देखकर दोबारा प्लान में बदलाव करना पड़ता है | भारती से अगला प्रश्न था कि हम क्या कर सकते हैं जिससे आपका उत्साह बना रहे और हमारे कौन से कार्यों से उत्साह कम होता है | भारती ने बताया कि क्लास चलाने में, स्टूडेंट्स से बातचीत करते हुए हमेशा अच्छा लगता है | बस जब उपस्थिति कम होती है तो निराशा होती है, और उस समय प्रक्रियाएं, जैसे स्टूडेंट असेसमेंट, और मुश्किल और भार जैसी लगती हैं, क्योंकि व्यक्तिगत रूप से हर स्टूडेंट के घर जाकर इन प्रक्रियाओं को पूरा करना होता है |

अब भारती ने स्कूटी रोकी और कहा कि हमें कुछ दोपहर की क्लास के स्टूडेंट्स के घर जाना चाहिए, क्यूंकि वह रास्ते में ही पड़ते हैं | हम जिस स्टूडेंट के घर सबसे पहले गए, उनका एक महीने पूर्व ऑपरेशन हुआ था | तबसे वह क्लास नहीं आ पाई हैं | सभी सामग्री भारती घर पर पहुंचा चुकी हैं | उनकी तबियत ठीक न होने के कारण, जब हम पहुंचे वह आराम कर रही थीं | उन्होंने हमारा स्वागत किया | उन्होंने बताया कि उनके तीनों बच्चे बड़े हैं, तो उनके पास समय पर्याप्त रहता है, परन्तु स्वास्थ्य के कारण वह नियमित रूप से पढ़ाई नहीं कर पर रही हैं | हमने उन्हें आराम करने के लिए कहा और अगले स्टूडेंट के घर गए, जो पड़ोस में ही रहती हैं | यह गाँव में मितानिन (छत्तीसढ़ में समुदाय स्वास्थ्य कर्मी) का काम करती हैं | इनके भी बच्चे बड़े हैं; भारती ने बताया यह गणित में बहुत अच्छी हैं | इन्होने चाय से हमारा स्वागत किया और हमने क्लास के विषय में उनसे बात की | भारती से काफी सपोर्ट रहता है, पर कुछ व्यक्तिगत समस्याओं के कारण वह नियमित रूप से क्लास आ नहीं पा रही हैं – हमने उन्हें दोपहर की क्लास आने के लिए प्रोत्साहित किया और वहां से तीसरे स्टूडेंट के घर चल दिए | इनसे बातचीत होने तक लगभग 3 बज चुके थे | लंच नहीं हो पाया था, पर हमें दुसरे सेंटर के लिए जाना था | अब हम धनेलीकंहार सेंटर पहुँचे |

जिन महिलाओं से हम मिलकर आये थे, उनमें से 2 महिलाएं भी सेंटर पर पहुँची | इसके अतिरिक्त दो और महिलाएं आयीं; इनमें से एक अपने छोटे से, शरारती शिशु काव्यांश को लेकर आई थीं |  सजावट में यह सेंटर लगभग पहले सेंटर जैसा ही दिख रहा था |

एक दिन भारती के साथ: एक सेकंड चांस कार्यकर्त्ता की लगन और ऊर्जा का परिचयशुरुआत में भारती सब का होमवर्क देख रही थी, और बता रही थी के अब तक क्या-क्या हुआ है | फिर भारती ने गृह विज्ञान की क्लास प्रारंभ की | चर्चा और गतिविधि का क्रम लगभग पिछले सेंटर जैसा ही था | पर यहाँ एक और चुनौती थी – काव्यांश एक जगह पर स्थिर नहीं बैठते थे – कभी वह टेबलेट और मोबाईल से खेल रहे थे, कभी स्टूडेंट्स के पुस्तकों के साथ खेल रहे थे और कभी सामने लगे चार्ट पेपर को खीचने का प्रयास कर रहे थे | वैसे तो छोटे बच्चों को मैं सहजता से संभाल लेता हूँ, पर काव्यांश जब भी मेरे पास आते थे या मुझे देख रहे थे, वह अपनी माँ के पास चले जाते थे | भारती के साथ ऐसा नहीं था – भारती क्लास भी ले रही थी, काव्यांश के साथ भी खेल रही थी – स्पष्ट था कि वह आनंद में थी, लंच न होने के बावजूद | इसी समय, मुझे ठनका जहां हम एक तरफ स्वास्थ्य गाइडलाइन बना रहे हैं, वहां मेरी आँखों के सामने, प्रथम की एक महत्वपूर्ण कर्मी सुबह से केवल काम कर रही थी | मैं भारती, उमाशंकर, जो कि मुझे कार में लेकर आये थे, और अपने लिए कुछ फल लेकर आया | भारती अब केला खाते हुए क्लास ले रही थी | कुछ ही देर में, भारती को कुछ फॉर्म कलेक्ट करने के लिए बाहर जाना पड़ा | उन्होंने कुछ देर के लिए मुझे क्लास संचालित करने को कहा | मुझसे आशा थी की दैनिक, साप्ताहिक और मौसमी साफ-सफाई पर सभी स्टूडेंट्स से प्रस्तुतीकरण कराना है और उसपर टिप्पणी देनी है | मैं भारती को बिलकुल निराश नहीं करना चाहता था, अपनी तरफ से मैंने पूरी लगन से यह प्रस्तुतीकरण कराया और ब्लैक बोर्ड पर सभी प्रकार के साफ सफाई के उदाहरण लिखे | मेरा लेखन कितने स्टूडेंट्स के समझ में आया, यह तो पता नहीं, पर स्टूडेंट्स कह रहे थे वह समझ पा रहे थे ! शायद मेरी भावना को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते थे |

गृह विज्ञान की क्लास समाप्त होने पर ऐसा लग रहा था कि स्टूडेंट्स में उत्साह की कमी हो रही है – पता नहीं इसमें मेरे द्वारा संचालित क्लास का क्या योगदान था ! तो भारती ने एक मज़ेदार energizer गतिविधि कराई | इसके बाद, अरुणिमा सिन्हा की कहानी के साथ, जीवन कौशल की क्लास हुई | कुछ देर में काव्यांश को भूख लग रही ही, तो उनकी माँ को जाना पड़ा | लगभग 4:45 pm हो चुके थे | अब भारती जिन स्टूडेंट्स का पोस्ट असेसमेंट नहीं हुआ था, उनका पोस्ट असेसमेंट कराने लगी | अब मुझे रायपुर जाना तो मैंने 5 बजे भारती से अनुमति ली और वहां से चला आया | भारती का दिन अभी भी समाप्त नहीं हुआ था | शाम में वह सेंटर से निकली होंगी, पर घर पर भी अगले दिन कि क्लास और कौन आएगा-कौन नहीं, किसके घर जाना है, यह सब तैयारी उन्हें रात में करनी पड़ी होगी |

मैं अपने साथ कई भावनाएं, विचार और सवाल लेकर रायपुर की ओर गया  –

  • आज का दिन भारती का एक टिपिकल दिन लग रहा था | ऐसा नहीं था कि मुझे दिखाने के लिए कुछ भी काम कम या ज्यादा हुआ हो | यदि ऐसा होता तो सभी स्टूडेंट्स (और उनके परिवार जनों) की भारती के साथ जो सहजता थी वह नहीं दिखती थी, न भारती सभी कार्यों में इतना आनंद लेते हुए दिखती थी |
  • 5-6 घंटे रोजाना पढ़ाना ज़रा भी आसान नहीं हो सकता | केवल जब आप इस काम के महत्त्व को समझते हैं और इसमें अत्यधिक आनंद लेते हैं, तभी यह करना संभव है |
  • हम कार्यक्रमों को समझने के लिए डेटा और फॉर्मेट का प्रयोग करते हैं, पर हमारे फैकल्टी ऐसे कई कार्य करते हैं जो कोई डेटा, कोई फॉर्मेट पकड़ नहीं सकता है – चाहे काव्यांश जैसे शिशुओं को संभालना हो, चाहे हर स्टूडेंट से व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाना हो, चाहे सेंटर की व्यवस्था बनाना हो | साथ ही, जहां मैनुअल और प्रशिक्षण एक आदर्श कक्षा-स्थिति के अनुसार डिज़ाइन होते हैं, वास्तविक कक्षा में बहुत जटिलताएं होती हैं – सब स्टूडेंट्स एक सामान नहीं होते, उपथिति में काफी भिन्नता है, जब स्टूडेंट्स आते भी है तो ऐसा नहीं है कि सब शुरुआत में आते है, या कक्षा अंत होने पर ही जाते हैं |
  • एक बात स्पष्ट हो रही थी – जिन समस्याओं से भारती जूझ रही थी, उस पर और चर्चा होने की ज़रुरत है | और नियमित रूप से फैकल्टी और लीडर की साथ बातचीत, समस्या और सुझाव पर चर्चा होना अच्छा रहेगा | इससे फैकल्टी को न केवल प्रोत्साहन मिलेगा, उन्हें इस बात की भी स्पष्टता रहेगी कि किन बातों पर फोकस और priority होनी चाहिए, और किन बातों को छोड़ा जा सकता है |

जहां मैं अब तक थक चूका था, भारती को यही प्रक्रियाएं रोज़ और निरंतर करनी होती है | यह अब मुझे प्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट हो रहा था – कि प्रथम का कार्य, प्रथम की पहचान भारती और भारती जैसे सदस्यों से ही है | मेरा और मेरे जैसे सदस्यों का काम तो केवल उन्हें सपोर्ट और मार्गदर्शन देना है | हम यह कितने अच्छे से कर पा रहे हैं, यह सवाल अब मैं हमेशा अपने आप से पूछूंगा |

– नीरज त्रिवेदी, ऑर्गेनाईज़ेशनल इफेक्टिवनेस

[1] मैं इस लेख के सभी पढने वालों से आग्रह करूँगा इनकी कहानी जरूर पढ़ें – https://en.wikipedia.org/wiki/Arunima_Sinha

[2] सेंटर में नेटवर्क नहीं था तो सेंटर से 2-3 किलेमीटर की दूरी पर जाकर मैंने कॉल लिया

प्रस्तावना: यह लेख अपने मूल रूप में प्रकाशित किया गया है, इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। लेखक के कार्य की सत्यता को बनाए रखने के लिए व्याकरणिक त्रुटियाँ, टाइपोग्राफिक गलतियाँ, या शैली बरकरर रखी गई हैं। यहां व्यक्त किए गए दृष्टिकोण व्यक्तिगत लेखकों के हैं और संगठन के दृष्टिकोण या पदों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।